अगर आप मनोरंजन जगत की खबरें चलाते और पढ़ते हैं तो आपने एक स्टार काफी सुना होगा 'फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन।' जिसे लेकर काफी बहसबाजी चल रही है। आलिया भट्ट और वेदांग राष्ट्रीय फिल्म 'जिगरा' पर ये आरोप लग रहे हैं। जब दिव्या खोसला जैसी बड़ी पर्सनैलिटी ने 'जिगरा' पर बॉक्स ऑफिस पर लगाया आरोप तो हर कोई चौंक गया। उन्होंने दावा किया कि थिएटर खाली पड़े हैं और बेकार बड़े-बड़े नंबरों के धारक लोगों को उल्लू बना रहे हैं। अब इस कॉन्ट्रोवर्सी के बीच एक सवाल उठ रहा है कि पिछले कुछ समय से बॉक्स ऑफिस से फाइनल रेयर रैक को क्या फायदा होता है? अंतिम फर्म बिजनेस के आंकड़े का क्या मतलब है? क्या बड़े-बड़े सितारे अपनी साख के लिए इन नंबरों का सहारा ले रहे हैं? तो इस खास स्टोरी में इसी विषय पर चर्चा करते हैं।
बॉक्सऑफ़िस दस्तावेज़ क्या होता है: फिल्मों के व्यवसाय की भाषा में अमूर्त शब्द काफी प्रचलित है। किसी भी फिल्म ने देश और दुनिया के थिएटर्स से कितने रुपये कमाए और फिर इसी दावे से हिट और फ्लॉप तमगा लगता है। बिजनेस के आबंटन के लिए भी नेट प्रोफिट, ग्रोस इम्पैक्ट और दुनिया भर में कई तरह के पैमाने पर डेटा-किताबें लगाई जाती हैं।
क्या होता है रिटेल बॉक्स ऑफिस
कुछ पूर्वज में इस टर्म का प्रयोग काफी होता आया है। लेकिन फ़ेसबुक बॉक्स के पीछे की कहानी कितनी सच है, इसका प्रमाण नहीं है। मगर फिल्म ऑफिस और पूरे गणित को देखकर यह जरूर कहा जाता है कि फ़्रैंच बॉक्स प्रॉफिट का मतलब नंबर का होता है। ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि डेमोक्रेटिक जनता के सामने हाइप बनाने के लिए खुद थिएटर्स के टिकटें डाक टिकट हैं, ताकि दर्शकों के सामने यह बात बन जाए कि फिल्म के शो फुल चल रहे हैं। इससे एक माइंड सेट भी बनता है कि अगर शोज फुल हैं, बढ़िया कलाकारी की मांग है तो मतलब फिल्म बढ़िया चल रही होगी।
किन फिल्मों पर लगा ये आरोप
'जिगरा' से पहले भी कई बड़ी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर आउट होने के आरोप लगे हैं। लेकिन साक्ष्य प्रमाण किसी भी फिल्म को लेकर नहीं मिलते हैं। लेकिन कई बड़े-बड़े सुपरस्टार्स की फिल्में ऐसी होती हैं जिनपर ये इल्जाम लगे होते हैं। जैसे imdb पर एक लिस्ट है। जो टॉप बॉलीवुड मूवीज के फर्जी आधिकारिक की बात करती है। इसमें 'ब्रह्मास्त्र', 'कृष 3', 'काबिल', 'बैंग बैंग' का जिक्र है। ब्रह्मास्त्र पार्ट वन: शिवा को लेकर आई इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि क्वांटम फिल्म को लेकर 257 करोड़ रुपए का बिजनेस है, जबकि ट्रेडर्स का आंकड़ा 160 करोड़ रुपए है। इसका मतलब है कि 97 करोड़ रुपये की एक झलक देखने को मिलती है।
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क्या साख के लिए होता है ये फर्जी वेंडर
असली का सहारा आख़िर क्यों लिया जाएगा? लेज़मी है कि एक कलाकार सुपरस्टार कैसे बनता है। जबकि राजपूतों के साथ बॉक्स ऑफिस को हिलाने की ताकत हो। जब वह एक ब्रांड बन गया। फेसबुक वेल्यू के अकाउंट से हो रही है करोड़ों की कमाई। डायरेक्टर्स ऐसे स्टार्स को अपनी फिल्मों में कास्ट करने के लिए आतुर रहते हैं तो डायरेक्टर्स भी करोड़ों की फीस दे देते हैं रेडी हो जाते हैं। मगर जब ये साख एक अभिनेता नहीं बचा तो उसके संस्थान में इंस्टीट्यूट कम हो जाता है। यह संभव है कि बड़े पैमाने पर स्टार्स अपने सुपरस्टार के टैग को बनाए रखें, ब्रांड वेल्यू को बनाए रखें और असेंबल बनाए रखने के लिए इसे सहारा लें।
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