Saturday, January 25, 2025
Homeबॉलीवुडताज के मुराद अर ताहा शाह ने बताया- करना था नेगेटिव रोल,...

ताज के मुराद अर ताहा शाह ने बताया- करना था नेगेटिव रोल, इसलिए मांगता था भगवान से दुआ


हर एक्टर का ड्रीम रोल होता है। उसके लिए वह ऊपरवाले से मन्नतें मांगता है, कोशिश करता है। कुछ ऐसा ही ताहा शाह ने हाल ही में ओटीटी पर आई सीरीज ‘ताजः विभाजित बाई ब्लड’ में मुराद के लिए किया। इसके लिए पहले किसी दूसरे कलाकार को तैयार किया गया था, लेकिन ताहा शाह का जूनून और उन्हें इस किरदार के करीब ले गया। यशराज बैनर की ‘लव का दी और’ से करियर की शुरुआत करने वाले ताहा को आखिरी अपना मुकाम अनजाना शुरू हो गया। उन्होंने दो हॉलिवुड फिल्में भी की हैं। अब एक्शन सीरीज़ और गंभीर किरदार करने का उनका सपना भी पूरा हो गया है इसलिए उन्होंने हमसे बातचीत के दौरान पहली बात यही कही कि मुराद ने मेरी पूरी मुरादें पूरी कर लीं।

मेरी किस्मत में ‘ताज…’ का हिस्सा होना था

‘ताजः डिवाइड बाई ब्लड’ में सबसे पहले मुझे अलर्ट देने का मौका ही नहीं मिला था। ज़ी-5 में मेरे एक दोस्त हैं। मैं तीन साल से उन्हें बोल रहा था कि कुछ अच्छा आए तो बताएं। अचानक से उनका फोन आया और उन्होंने कहा कि एक रोल है पर वह पहले ही फाइनल हो गया है, लेकिन मैं चाहता हूं कि एक बार ध्यान उन्हें दिखाऊं। मैंने उन्हें दो हफ्ते तक नोटिस भेजा, फोन नहीं आया। लगा कि बाकी डिटेल्स की तरह ये भी नहीं मिला फिर उनका कॉल आ गया। उन्होंने यूके के डायरेक्टर और राइटर विलियम्स के साथ काम किया। हम तीनों घंटे के लिए मिले। मैं दो हॉलीवुड फिल्में कर चुका हूं, जिनमें से एक रिलीज हो चुकी है और एक बाकी है। मैंने उन्हें अपना काम दिखाया। मैंने एक्शन के प्रति अपना जुनून उनके सामने रखा। इतना कहने के बाद विलियम्स को यकीन हो गया कि मैं मुराद के लिए परफेक्ट हूं। उन्होंने डायरेक्टर को समझा-बुजाकर मना लिया। इसे किस्मत ही कहें। मैंने बहुत से नोटिस दिए और मुझे एक बात समझ में आई कि आप ज्यादा से ज्यादा अच्छे कर लो, अगर काम आपको नहीं मिलता है तो नहीं मिलेगा। आखिरकार वही आपको मिलेगा, जो ऊपरवाले ने आपके लिए लिखा है।

शिल्पा शिंदे: उद्योग में बस पाप… दुष्कर्म का शिकार हो चुकी शिल्पा शिंदे बोलीं- कई बेवकूफ हुई

आदित्य चोपड़ा सर ने कहा था कि नेगेटिव रोल करो

मैं यह कह सकता हूं कि मुराद ने मेरी मुरादें पूरे कर कब्जे। मेरे आदित्य चोपड़ा सर ने कहा था कि तुम नेगेटिव कैरेक्टर करो। तुम्हारी आँखों से कुछ झलकता है। मैं कॉलेज जाने वाले लड़के और प्रेमी लड़के की पहचान करके बोर हो जाता हूं। मुझे ऐसी भूमिकाएं नहीं करनी हैं। मैंने ऊपरवाले से दावा किया कि ऐसा किरदार मिला, जो नकारात्मक हो गया और एक्शन का भरपूर मौका भी मिला। मेरे जीवन का जितना दर्द है, उसे मैं अपनी क्षमता में समेटता हूं और मुराद ने मुझे यह मौका दिया।

मेरी ज़िंदगी से मिलती है- झलकती है

इस कहानी की खास बात यह है कि वह सिर्फ तख्तापलट के पीछे भाग नहीं ले रहा है। असल में वह पिता का प्यार पाना चाहता है, जो उसे नहीं मिला। मेरे जीवन में भी कई ऐसे दृश्य आए, जब मैंने जी-तोड़कर परिश्रम के लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। मैं सबसे आगे था लेकिन मुझे उसकी कोई मान्यता नहीं मिली। मेरे दोस्त भी मेरा नाम नहीं ले रहे थे। आख़िर क्यों? ठीक इसी तरह मुराद भी है, जो बस अपने लिए पिता के दो म्यूट बोल चाहता है। अगर ऐसा होता है तो वह ब्रुटल और गुस्सैल नहीं होता।

Exclusive: ‘अंगूरी भाभी’ शुभांगी अत्रे ने बताया- पंडित जसराज जी तब तक रियाज नहीं करते थे जब तक ‘भाबी जी’ न देख लें

चोट लगने के बावजूद सभी सीन शूट किए गए

मैंने मुराद के लिए चोट और खून-पसीना भी बहाया। मुझे घोडे ने लात मारी थी, जिससे घुटने के पास गहरी चोट आई थी। इसके बावजूद मैं पहाड़ पर खड़ा रहा और सारे सीन दिए। मेरे आस-पास सैकड़ों कलाकार उस फाइट सीक्वेंस को शूट कर रहे थे और मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजह से रुकावट आए। मैं तीन घंटे की शूटिंग पूरी कर इलाज के लिए अस्पताल गया। लकड़ी से बनी तलवारों से कभी मुंह तो कभी गर्दन पर चोट। मैंने सारे एक्शन सीन्स एक शॉट में दिए। मैंने पहले ही कहा था कि मैं एक्शन सीन्स करूंगा तो एक ही शॉट में। मैंने अपनी पहली एक्शन सीरीज़ में पूरी तरह से धूम मचा दी। मुराद के लिए अपना हड्डिया, खून-पसीना सब लगा दिया।

धर्मेंद्रजी का एक हाथ मेरे दो हाथ के बराबर

धर्मेंद्रजी से मेरी बहुत कम मुलाकात हुई। उनके साथ कोई सीन करने का स्वर भी नहीं मिला। मैं उनका बचपन से फैन रहा हूं। मैंने उनकी कोई सुपरमैन फिल्म देखी थी और मन में उनकी वही तस्वीर छपी थी। उनकी ‘तहलका’, ‘फरिश्ते’ जैसी फिल्में दिखती हैं। एक फिल्म में तो वह प्लेन पकड़कर खींच रहे थे। इसके बाद मैं पूरी तरह उन पर फिदा हो गया। मैं पहली बार जब उनसे मिला तो लगा कि उन्हें इंडस्ट्री का हीमैन क्यों कहा जाता है। उनका एक हाथ मेरे दो हाथ के बराबर है। इतनी उम्र के बावजूद आज भी वह मजबूत कदकाठी वाले हैं।

लखनऊ में मेरी माँ ने कुछ गलतियाँ कीं। माता का आना-जाना लगा रहता है। मैं कभी नवाबों की नगरी में नहीं आया हूं, लेकिन मुझे लगता है कि किसी प्रोजेक्ट की शूटिंग के लिए मैं मार्च में ही आ सकता हूं। अभी उस पर बातचीत चल रही है, जैसी सारी चीजें तय होती हैं, मैं लखनऊ के दीदार करने की योजना बनाता हूं।

-ताहा शाह, फिल्म अभिनेता

नसीर सर के अंदर गज़ब का जुनून है

नसीर साहब के बारे में जितना कहते हैं, वो कम है। उनके काम के प्रति जो समर्पण है वो गजब है। ऐक्टिंग को लेकर उनकी नजरिया सजीव है। वह कभी-कभी किसी स्क्रिप्ट को याद करते हुए नज़र आता है तो कभी कोई किताब या फिर डायलॉग याद करता है। इंडस्ट्री में इतने सालों तक रहने के बाद भी वह अपनी वरिष्ठता के बारे में किसी के सामने जाहिर नहीं करते। उन्होंने हमारे साथ अपने शेक्सपियर वाले प्ले और फिल्मी टच का अनुभव साझा किया था। मैं खुद चाहता था कि वो ‘स्पर्श’ का अनुभव बताएं क्योंकि मैं भी भविष्य में एक अंधे व्यक्ति की भूमिका निभाना चाहता हूं। मुझे उनसे बहुत सी चीजें सीखने को मिलीं। वह बिल्कुल दोस्त की तरह बात करते हैं। मेरी तमन्ना है कि आगे भी उनके साथ अवश्य ही काम करने वाला है।

इंटरव्यू: स्कूल में राइटिंग करने के लिए श्रद्धा कपूर ले जाती थीं फर्रे, बोलीं-प्रारंभ से ही फेयर हूं

दादा ने न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी में कई दस्तावेज बनाए हैं

मेरी माँ सिंगल मदर हैं। उन्होंने अकेले ही भाई और मुझे बड़ा किया। 12वीं के बाद मैंने यूनिवर्सिटी में दखल लिया। मैंने देखा कि वह अकेला ही सारा काम करता है और मैं कॉलेज में मजे कर रहा हूं। मैंने सब उनके साथ काम करना शुरू कर दिया। दो-तीन साल के निर्माण, फिक्स-स्टील के इंपोर्ट जैसे काम किया गया लेकिन 2008-09 के पास रिस्क आया और मुझे बड़ा नुकसान हुआ। मैं डूब गया तो मैं पागल हो गया। उसके बाद में फेसबुक का काम मिल गया। मैंने वोटर के लिए 2 साल पहले अपनी फोटोज दी थीं और दो साल बाद काम करना शुरू किया। मुझे मजा आ गया। उस वक्त अबुधाबी में न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी खुल रही थी। मैंने सोचा कि खुद में ऐसा हुनर ​​पैदा कर दूंगा, फिर जिंदगी में कोई परेशानी नहीं होगी, उसे कोई बहाना नहीं चाहेगा। मैं पहले तो अमीडिया में उत्पीड़न नहीं ले रहा था, लेकिन माता-पिता ने कान पकड़कर, जहां से तीन घंटे की कार ड्राइव करके अबुधाबी ले आई। मेरी सहायता करें। बस वहीं से मेरी ऐक्टिंग का सफर शुरू हो गया।

मुंबई में 5-6 महीने बाद मिली ‘लव का दी एंड’

मुझे अकादमी एक साल की पढ़ाई के लिए लॉस एंजेलिस भेज रही थी पर माँ ने मुझे मुंबई भेज दिया। वैसे इससे पहले मैंने अकादमी में अपनी प्रतिभा से अपना दीवाना बना दिया। जो लोग कल तक मेरी उम्मीद नहीं करते थे, वो मेरे साथ आने वाले थे। मैंने एडी, डायरेक्टर, लाइटिंग, साउंड जैसे सभी काम किए। शिक्षक कहते हैं कि तुम इसी के लिए बने थे। आखिरकार मुझे अपना पैशन मिल गया। इसके पहले मैं उतना ही बेहतर कर लूं कोई मेरी आकांक्षा नहीं करता था। ये मेरे लिए बड़ा बदलाव था। मैं मुंबई आया और कुछ महीने यहां कोर्स किया। मैंने पहले ही ठान लिया था कि बिना कोई फिल्म किए वापस नहीं हो सकती। मुझे 5-6 महीने के बाद यशराज बैनर की ‘लव का दी और’ मिल गया। मुझे तब पता भी नहीं था कि यशराज बैनर कितना बड़ा है।

पंकज कपूर का इंटरव्यू: सन अफसर कपूर पर होता है पापा पंकज कपूर को फंक, बोले- अब सीखने का समय आ गया है

मां ने रोना नहीं सिखाया, मेहनत करने से होगा

लोग मुझसे कहते हैं कि संज्ञान वगैरह से कुछ नहीं होता, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। कई बार रिजेक्ट हुआ लेकिन मैंने करके दिखा दिया। मुझे आज तक किसी ने ऐसा ही काम नहीं दिया है। मैंने माँ की दुआओं और अपने परिश्रम के दम पर सब पाया है। कई बार मेरी हिम्मत टूटती है और मैं रोया भी। ये एक बार है, जिसे मैं गिनने बैठता हूं तो सुबह से शाम हो जाए। हर बार माँ ने मुझे सहयोग दिया। उन्होंने कहा कि रोने से नहीं, मेहनत करने से होगा। मेरी जिंदगी में मां, भाई और दोस्त तुषार का बहुत साथ रहा।



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments