Saturday, January 25, 2025
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जाने जान रिव्यू: सिर्फ जयदीप अहलावत हैं इस फिल्म को देखने की वजह, अन्य बातें जानने के लिए आप पढ़ें


जाने जान मूवी समीक्षा: आप उम्मीद कर रहे हैं कि शुरू हो जाएगा और फ्रेमवर्क खत्म हो जाएगा, तो सामने वाली टीम पर संदेह होना वाजिब है। निर्देशक सुजॉय घोष (सुजॉय घोष) की फिल्म जाने जान (जाने जान) में यही होता है। जयदीप अहलावत को छोड़ दिया गया, तो निर्देशित करीना कपूर (करीना कपूर) और विजय वर्मा (विजय वर्मा) की यह आखिरी फिल्म एक तरह से खराब हो गई है। जापानी उपन्यास द डिवोशन ऑफ इंस्पेक्टर एक्स पर इस फिल्म बनने के दृश्यों की कई बार चर्चा हुई थी। लेकिन जब फिल्म आई तो बड़ा नाम और छोटी दर्शन कहावत खुद-ब-खुद याद आ गई। कहानी जैसी फिल्म बनाने वाले सुजॉय घोष हर नई फिल्म के साथ उतरते परदिखते हैं। करीना कपूर यहां किसी भी लेवल पर प्रभावित होने में नाकाम हैं।

जयदीप चौबारा

जाने जान की अगर कोई जान है, तो वह हैं जयदीप अहलावत (जयदीप अहलावत)। वह निर्देशित और मित्र कलाकारों के निदेशकों के बीच अपना झंडा गाड़ते हैं। अनाकारक व्यक्ति, जीनियस गणित शिक्षक और एक शिल्पकार प्रेमी के रूप में जयदीप का यह किरदार याद रखा गया। एक्टर के किसी भी पक्ष को उन्होंने अपनी तरफ से रिकवरी नहीं दी। एसस्पेक्ट एक्स के रूप में वह कहानी केंद्र में हैं और इसे गतिमान रखते हैं। जबकि करीना का किरदार कुछ सीमित बातों के अनुभवों में बंधा रहता है। हालांकि इस किरदार में नजर आती हैं मगर करीना उन परतों के साथ खुद को ढालने में नाकाम नजर आती हैं। वह अचूक से अभिनय करते हैं और प्रभाव पैदा करने में नाकाम रहते हैं।

गणित और तर्क
विजय वर्मा एक्टर्स से ‘बॉलीवुड हीरो’ (बॉलीवुड हीरो) की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसा करते हैं कई एक्टर्स लड़खड़ाए। यह खतरनाक विजय वर्मा के सामने भी है। करीना की तरफ उनकी नकली रोमांटिक कहानी में कोई रंग नहीं भरता। तय है कि जयदीप अहलावत ने फिल्म छोड़ दी, तो करीना और विजय वर्मा की पसंदीदा फिल्म का फॉर्मेशन है। वहीं सौरभ सचदेवा अपनी छोटी सी भूमिका में जमे हुए हैं। जाने में गणित और तर्कशास्त्र की बातें हैं। इस फिल्म को निर्देशक सुजॉय घोष ने अपनी फिल्म को कैसे बनाया में नाकाम रहे। गणित और तर्कशास्त्र में गणितीय सूत्र से जोड़-घटाव के बाद अंतिम निष्कर्ष महत्वपूर्ण होता है। जाने जन में अंतिम निष्कर्ष ही फ्लॉप प्रोविजन होता है। यह चकित करने वाली बात है कि जो कहानी उपन्यास के रूप में बीस लाख बड़े कॉमिक बिक की बात करती है, सुजॉय की फिल्म के रूप में वह निराश करती है।

कथा-पटकथा
जाने जान की कहानी पश्चिम बंगाल में हिमालय के ताराई वाले पहाड़ी इलाके में बसे कलिमपोंग में विस्तार की योजना है। माया डिसूजा (करीना कपूर) यहां एक रेस्टोरेंटनुमा फूड सेंटर चलाती है। वह 12 साल की बेटी की सिंगल मदर है। माया का पड़ोसी है नरेन (जयदीप अहलावत)। गणित का जीनियस टीचर. 13-14 साल बाद अचानक माया की पत्नी की तलाश शुरू हो गई। माया के हाथों में वह घर में मारा जाता है। नरेन इस हत्या में छुपकर माया और उसकी बेटी की मदद करता है। तभी मुंबई (मुंबई) से एक पुलिस स्टेशन करण (विजय वर्मा) भी माया के पति की तलाश में है। उनकी मृत्यु हो गई है और माया उनके लिए मुख्य निशान है! क्या बच गया क्रिस्टोफर माया और क्या रोल होगा जीनियस नरेन का?

दृश्यम का द्वार
दरअसल इसी उपन्यास के किरदार को लेकर कुछ साल पहले मलयालम में विजुअलम बनी थी, जिसके हिंदी रीमेक में अजय देवगन (अजय देवगन) नजर आए थे। फिर पिछले साल का विजुअलम का सीक्वल भी बना। सच तो यह है कि सिक्कों के समान सूत्र के बावजूद भी किसी भी स्तर पर दृश्यम के सामने भी नहीं देखा जा सकता है। दृश्यम निधन के लापता होने का सिरा बेहद विचित्र से दर्शकों के सामने लाती है, जबकि जान में इस सवाल का ही जवाब नहीं! बाकी और भी कुछ चीजें यहां अनसुलझी हैं। जहां तक ​​नरेन के माया डिसूजा के प्रति मियां प्रेम की बात है, तो वह कभी इतनी शिद्दत से नहीं उभरती कि देखने वाले को छू सके। माया के किरदार में ऐसी कुछ नजर नहीं आती कि उनकी बेबसी दर्शकों से जुड़ जाए। नेटफ्लिक्स इंडिया पर दो घंटे से ज्यादा की ये फिल्म देखने की असली वजह जयदीप अहलावत हैं। जहां तक ​​करीना की बात है तो वह इस बर्थडे (Kareena kapoorbirthday) से पहले ही पू जैसे कलाकारों की उम्र से आगे बढ़ गई हैं। जबकि माया को रोल के लिए जो जरूरी निखार चाहिए था, वह इस फिल्म में कम से कम नहीं दिखीं।

निर्देशक: सुजॉय घोष
स्टार: करीना कपूर, जयदीप अहलावत, विजय वर्मा, सौरभ सचदेवा
रेटिंग**



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